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विश्वास पाटील बद्दल

विश्वास पाटील (जन्म: 28 नवम्बर, 1959) मराठी भाषा के एक साहित्यकार, इतिहासकार और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। उन्होंने रायगढ़ जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और मुंबई उपनगर जिला के जिलाधिकारी के रूप में काम किया है। पाटील का जन्म कोल्हापुर जिले के नेरले गाँव के एक कृषक परिवार में हुआ। जब वे पाठशाला में पढ़ रहे थे, वे अपने परिवार को आर्थिक रूप से सहायता करने के लिए चरवाहे का काम भी करते थे। बचपन में उन्होने वी शांताराम की मराठी फ़िल्म 'पिंजरा' में बाल कलाकार की छोटी भूमिका निभायी। वे अपने परिवार के पहले पदवी धारक बने। 1986 में वे सरकारी कर्मचारी बने और 1996 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बने। पाटील का पहला उपन्यास पानीपत 1988 में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास पानीपत के तृतीय युद्ध पर आधारित है, जिसमें अहमद शाह अब्दाली से मराठे हार गये थे। साहित्यकार वि. वा. शिरवाडकर ने पाटील के उपन्यास के विषय की सराहना करते हुए उनकी 'खूबसूरत भाषा और भव्य वर्णनात्मक शैली' की प्रशंसा की। केवल दो सालों में पानीपत की २०,००० से ज्यादा प्रतियाँ बेची गयीं। पाटील द्वारा रचित उपन्यास झाडाझडती के लिये उन्हें सन् 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (मराठी) से सम्मानित किया गया। यह उपन्यास महाराष्ट्र में विभिन्न विकास परियोजनाओं से विस्थापित लोगों की जीवन कथाओं पर आधारित है। इसकी रचना पाटील ने तब की जब वे पुणे मे पुनर्वास अधिकारी के रूप में काम कर रहे थे। पाटील का उपन्यास महानायक सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर आधारित है, जिसके लिए शोध के क्रम में लेखक ने अनेक देशों की यात्राएँ भी की थीं। उनका उपन्यास चंद्रमुखी महाराष्ट्र की एक कलाकार (नर्तकी) और उसके एक राजनीतिज्ञ के साथ सम्बन्धित जीवन के बारे में है। सम्भाजी नामक अपने नवीन उपन्यास में लेखक ने काफी शोध के बाद सम्भाजी से सम्बद्ध बहुत-कु

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विश्वास पाटील ची पुस्तके

Panipat | पानिपत

Panipat | पानिपत

'महाराष्ट्राच्या पुढ्यात विधात्याने असे शिवधनुष्य कधीच टाकले नसेल. परक्या घुसखोराला हिंदुस्थानबाहेर हाकलून देण्यासाठी मराठी मनगटानेही या शिवधनुष्याला जिद्दीने, इरेसरीने हात घातला. मराठी पठारावरचे असे एक गाव, एक घर एक उंबरठा नव्हता; अशी एखादी जात, पोट

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पुस्तक मुद्रित करा:

480/-

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'महाराष्ट्राच्या पुढ्यात विधात्याने असे शिवधनुष्य कधीच टाकले नसेल. परक्या घुसखोराला हिंदुस्थानबाहेर हाकलून देण्यासाठी मराठी मनगटानेही या शिवधनुष्याला जिद्दीने, इरेसरीने हात घातला. मराठी पठारावरचे असे एक गाव, एक घर एक उंबरठा नव्हता; अशी एखादी जात, पोट

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